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रविवार 02 अप्रैल का सुसमाचार: मत्ती 26, 14-27, 66

खजूर रविवार, मत्ती 26, 14-27, 66

मत्ती 26: यहूदा यीशु को धोखा देने के लिए सहमत हो गया

14 तब बारहोंमें से एक, जो यहूदा इस्करियोती कहलाता या, प्रधान याजकोंके पास गया?

15 और उस से पूछा, यदि मैं उसे तेरे हाथ पकड़वा दूं, तो तू मुझे क्या देने को तैयार है?

तब उन्होंने उसके लिथे चान्दी के तीस टुकड़े गिने।

16 तब से यहूदा उसे पकड़वाने का अवसर ढूंढ़ता रहा।

पिछले खाना

17 अखमीरी रोटी के पर्व के पहिले दिन, चेले यीशु के पास आकर कहने लगे, तू कहां चाहता है, कि हम तेरे लिथे फसह खाने की तैयारी करें?

18 उस ने उत्तर दिया, नगर में फल के पास जाकर उस से कहो, कि गुरू कहता है, कि मेरा समय निकट है। मैं अपने चेलों के साथ तुम्हारे घर में फसह का पर्व मनाने जा रहा हूं।'”

19 सो चेलों ने जैसा यीशु ने कहा या, वैसा ही किया और फसह तैयार किया।

20 जब सांझ हुई, तो यीशु बारहोंके साय मेज पर बैठा या।

21 जब वे खा ही रहे थे, तो उस ने कहा, मैं तुम से सच कहता हूं, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।

22 वे बहुत उदास हुए, और एक एक करके उस से कहने लगे, हे प्रभु, निश्‍चय तू मैं नहीं हूं?

23 यीशु ने उत्तर दिया, “जिसने मेरे साथ कटोरे में हाथ डाला है, वही मुझे पकड़वाएगा।

24 मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है। परन्तु उस मनुष्य पर हाय जो मनुष्य के पुत्र को पकड़वाता है! यह उसके लिए अच्छा होता यदि वह पैदा ही न हुआ होता।”

25 तब उसके पकड़वानेवाले यहूदा ने उस से कहा, हे रब्बी, निश्‍चय तेरा मतलब मैं नहीं हूं?

यीशु ने उत्तर दिया, “तूने ऐसा कहा है”

26 जब वे खा ही रहे थे, तो यीशु ने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और चेलोंको देकर कहा, लो, खाओ; यह मेरा शरीर है।"

27 फिर उस ने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें यह कहते हुए दिया,

 "इससे पी लो, तुम सब। 28 यह वाचा का मेरा वह लोहू है, जो बहुतोंके लिथे पापोंकी झमा के निमित्त बहाया जाता है।

29 मैं तुम से कहता हूं, कि दाख का यह रस उस दिन तक कभी न पीऊंगा, जब तक तुम्हारे साय अपके पिता के राज्य में नया न पीऊं।।

30 वे भजन गाकर बाहर जैतून के पहाड़ पर गए।

यीशु ने पतरस के इनकार की भविष्यवाणी की

31 तब यीशु ने उन से कहा, इसी रात तुम सब मेरे कारण ठोकर खाओगे, क्योंकि लिखा है,

“मैं चरवाहे को मारूंगा, और झुण्ड की भेड़ें तित्तर बित्तर हो जाएंगी।

32 परन्तु मेरे जी उठने के बाद मैं तुम से पहिले गलील को जाऊंगा।

33 पतरस ने उत्तर दिया, कि चाहे सब तेरे कारण ठोकर खाएं, तौभी मैं कभी न करूंगा।

34 यीशु ने उत्तर दिया, मैं तुम से सच कहता हूं, कि इसी रात मुर्गे के बांग देने से पहिले, तू तीन बार मुझ से इन्कार करेगा।

35 परन्तु पतरस ने उन से कहा, यदि मुझे तुम्हारे साय मरना भी पड़े, तौभी मैं तुम से कभी न मुकरूंगा। और बाकी सब शिष्यों ने भी यही कहा।

गेथसेमेन

36 तब यीशु अपके चेलोंके साय गतसमनी नाम एक जगह को गया, और उन से कहा, यहां बैठे रहो, जब तक मैं वहां जाकर प्रार्यना करूं।

37 और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को संग ले गया, और उदास और व्याकुल होने लगा।

38 तब उस ने उन से कहा, मेरा मन इतना उदास है कि मैं मरना चाहता हूं। यहीं ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।”

39 फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर भूमि पर मुंह के बल गिरा और यह प्रार्यना करने लगा, कि हे मेरे पिता, यदि हो सके तो यह कटोरा मुझ से टल जाए। तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही।"

40 फिर वह अपने चेलों के पास लौटा और उन्हें सोते पाया। “क्या तुम लोग मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके?” उसने पीटर से पूछा।

41 “जागते रहो और प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो। आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।”

42 उस ने दूसरी बार जाकर यह प्रार्यना की, हे मेरे पिता, यदि यह प्याला मेरे पीए बिना टलना सम्भव नहीं, तो तेरी इच्छा पूरी हो।

43 जब वह लौटकर आया, तो उन्हें फिर सोते पाया, क्योंकि उन की आंखें नींद से भरी हुई यीं।

44 तब वह उन्हें छोड़कर एक बार फिर चला गया, और वही बात कहकर तीसरी बार प्रार्यना की।

45 तब वह चेलों के पास लौट आया और उनसे कहा, “क्या तुम अब तक सोते और आराम करते हो? देखो, वह घड़ी आ पहुंची, और मनुष्य का पुत्र पापियोंके हाथ में पकड़वाया जाता है।

46 उठो! अब चलें! यहाँ मेरा विश्वासघाती आता है!

यीशु गिरफ्तार

47 वह यह कह ही रहा या, कि यहूदा जो बारहोंमें से एक या, आ पहुंचा। उसके साथ महायाजकों और लोगों के पुरनियों की ओर से तलवारें और लाठियां लिए हुए एक बड़ी भीड़ भेजी गई यी।

48 उसके पकड़वानेवाले ने उनको यह संकेत दिया या, कि जिसे मैं चूम लूं वही वह है; इसे गिरफ्तार करे।"

49 यहूदा ने तुरन्त यीशु के पास जाकर कहा, हे रब्बी, नमस्कार! और उसे चूमा।

50 यीशु ने उत्तर दिया, “मित्र, जिस काम के लिये तू आया है वह कर।”

तब उन लोगों ने आगे बढ़कर यीशु को पकड़ लिया और उसे पकड़ लिया।

51 तब यीशु के साथियों में से एक ने तलवार बढ़ाकर खींच ली, और महायाजक के दास पर चलाकर उसका कान उड़ा दिया।

52 यीशु ने उस से कहा, अपनी तलवार म्यान में रख; क्योंकि जो तलवार चलाते हैं वे सब तलवार से मरेंगे।

53 क्या तू नहीं समझता कि मैं अपके पिता को पुकार सकता हूं, और वह स्वर्गदूतोंकी बारह पलटन से अधिक मेरे पास तुरन्त पहुंचा देगा?

54 परन्तु फिर पवित्र शास्त्र का वह लेख कैसे पूरा होता, जो कहता है, कि ऐसा ही होना चाहिए?”

55 उसी घड़ी यीशु ने भीड़ से कहा, क्या मैं बलवा करता हूं, कि तुम तलवारें और लाठियां लेकर मुझे पकड़ने को निकले हो?

मैं प्रतिदिन मन्दिर में बैठकर उपदेश दिया करता था, और तुम ने मुझे न पकड़ा।

56 परन्तु यह सब इसलिये हुआ है कि भविष्यद्वक्ताओं के लेख पूरे हों।”

तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए।

महासभा से पहले यीशु

57 यीशु को पकड़नेवाले उसे महायाजक कैफा के पास ले गए, जहां शास्त्री और पुरनिए इकट्ठे हुए थे।

58 परन्तु पतरस दूर ही दूर उसके पीछे पीछे महायाजक के आंगन तक पहुंचा। वह अंदर गया और परिणाम देखने के लिए पहरेदारों के साथ बैठ गया।

59 प्रधान याजक और सारी महासभा यीशु के विरुद्ध झूठा प्रमाण ढूंढ़ रही थी, कि उसे मार डाले।

60 परन्तु बहुत से झूठे गवाहोंके आने पर भी न पाया।

अंत में दो सामने आए

61 और उस ने कहा, उस ने कहा, कि मैं परमेश्वर के मन्दिर को ढा सकता हूं, और तीन दिन में बना सकता हूं।

62 तब महायाजक खड़ा हुआ और यीशु से कहा, क्या तू उत्तर न देगा? यह क्या गवाही है जो ये लोग तुझ पर चढ़ा रहे हैं?”

63 परन्तु यीशु चुप रहा।

महायाजक ने उस से कहा, मैं तुझे जीवते परमेश्वर की शपथ धराता हूं, हमें बता, क्या तू परमेश्वर का पुत्र मसीह है।

64 यीशु ने उत्तर दिया, “तूने ऐसा कहा है।” "परन्तु मैं तुम सब से यह कहता हूं, कि अब से तुम मनुष्य के पुत्र को उस सर्वशक्तिमान की दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलोंपर आते देखोगे।"

65 तब महायाजक ने अपके वस्त्र फाड़कर कहा, इस ने परमेश्वर की निन्दा की है; हमें और गवाहों की आवश्यकता क्यों है? देखो, अब तुम ने निन्दा सुनी है। 66 तुम क्या सोचते हो?”

उन्होंने उत्तर दिया, “वह प्राणदण्ड के योग्य है।”

67 तब उन्होंने उसके मुंह पर यूका, और उसको घूंसे मारे। दूसरों ने उसे थप्पड़ मारा

68 और कहा, हे मसीह, हम से भविष्यद्वाणी कर। किसने आपको टक्कर मारी?"

पतरस ने यीशु को अस्वीकार किया

69 पतरस बाहर आंगन में बैठा या, कि एक लौंडी उसके पास आई। उसने कहा, “तू भी गलील के यीशु के साथ था।”

70 परन्तु उस ने सब के साम्हने इन्कार किया। "मुझे नहीं पता कि आप किस बारे में बात कर रहे हैं," उन्होंने कहा।

71 तब वह फाटक के पास निकला, जहां दूसरी दासी ने उसे देखकर लोगोंसे कहा, यह तो यीशु नासरी के साय या।

72 उस ने शपथ खाकर फिर इन्कार किया, कि मैं उस मनुष्य को नहीं जानता।

73 थोड़ी देर के बाद जो वहां खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास जाकर कहा, निश्चय तू भी उन में से एक है; आपका उच्चारण आपको दूर कर देता है।

74 तब वह कोसने लगा, और शपथ खाकर कहने लगा, मैं उस मनुष्य को नहीं जानता।

तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी।

75 तब पतरस को यीशु की कही हुई बात स्मरण आई, कि मुर्गे के बांग देने से पहिले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।

और वह बाहर गया और फूट-फूट कर रोने लगा।

यहूदा ने फांसी लगा ली

27 बिहान को सबेरे प्रधान याजकोंऔर प्रजा के पुरनियोंने विचार किया, कि यीशु को किस रीति से पूरा किया जाए।

2 सो उन्होंने उसे बान्धा, और ले जाकर पीलातुस हाकिम के हाथ में सौंप दिया।

3 जब उसके पकड़वानेवाले यहूदा ने देखा, कि यीशु दोषी ठहराया गया है, तो पछताया, और वे तीस चान्दी के सिक्के महायाजकोंऔर पुरनियोंके पास फेर दिए। 4 उस ने कहा, मैं ने पाप किया है, क्योंकि मैं ने निर्दोष को खून के लिथे धोखा दिया है।

"वह हमारे लिए क्या है?" उन्होंने उत्तर दिया। "यह आपकी जिम्मेदारी है।"

5 तब यहूदा वह रूपया मन्दिर में फेंक कर चला गया। फिर वह चला गया और खुद को फांसी लगा ली।

6 प्रधान याजकों ने उन सिक्कों को उठाकर कहा, “इसे भण्डार में रखना नियम के विरुद्ध है, क्योंकि यह लोहू का रूपया है।”

7 तब उन्होंने उस पैसे से परदेशियोंके कब्रिस्तान के लिथे कुम्हार का खेत मोल लेने का विचार किया।

8 इसी कारण वह आज तक लोहू का खेत कहलाता है।

9 तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया या, वह पूरा हुआ, कि उन्होंने वे तीस चान्दी के टुकड़े ले लिए, जो इस्त्राएलियोंकी ओर से उसके लिथे ठहराए हुए दाम थे, 10 और यहोवा की आज्ञा के अनुसार उन से कुम्हार का खेत मोल लिया।

पीलातुस से पहले यीशु

11 इतने में यीशु हाकिम के साम्हने खड़ा हुआ, और हाकिम ने उस से पूछा, क्या तू यहूदियों का राजा है?

"आपने ऐसा कहा है," यीशु ने उत्तर दिया।

12 जब महायाजकों और पुरनियों ने उस पर दोष लगाया, तब उस ने कुछ उत्तर न दिया।

13 तब पिलातुस ने उस से कहा, क्या तू ने वह गवाही नहीं सुनी जो वे तेरे विरूद्ध देते हैं?

14 परन्तु यीशु ने एक बात का भी उत्तर न दिया, यहां तक ​​कि हाकिम को बड़ा आश्चर्य हुआ।

15 राज्यपाल की यह रीति थी कि पर्व के समय वह भीड़ के चुने हुए बन्धुए को छोड़ देता था।

16 उस समय बरअब्बा नाम का एक नामी बन्धु उन में रहता या।

17 जब भीड़ इकट्ठी हुई, तो पीलातुस ने उन से कहा, तुम क्या चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिथे छोड़ दूं: बरअब्बा को, या यीशु को जो मसीह कहलाता है?

18 क्‍योंकि वह जानता या, कि उन्होंने यीशु को अपके स्वार्थ के लिथे पकड़वाया है।

19 जब पीलातुस न्यायी की गद्दी पर बैठा या, तब उस की पत्नी ने उसके पास यह कहला भेजा, कि उस निर्दोष का कुछ काम न करना, क्योंकि मैं ने आज स्वप्न में उसके कारण बहुत दु:ख उठाया है।

20 परन्तु प्रधान याजकों और पुरनियों ने भीड़ को बरबस को मांगने, और यीशु को मार डालने के लिये उभारा।

21 तुम दोनों में से किसे चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये छोड़ दूं? राज्यपाल से पूछा।

उन्होंने उत्तर दिया, “बरअब्बा।”

22 सो मैं उस यीशु का जो मसीह कहलाता है क्या करूं? पीलातुस ने पूछा।

सब ने उत्तर दिया, “उसे क्रूस पर चढ़ा!”

23 “क्यों? उसने क्या अपराध किया है?” पीलातुस से पूछा।

परन्तु वे और भी ऊँचे शब्द से चिल्लाए, “उसे क्रूस पर चढ़ा!”

24 जब पीलातुस ने देखा, कि मैं कहीं नहीं पहुंचता, परन्तु इसके बदले हुल्लड़ होता जाता है, तो उस ने पानी लेकर भीड़ के साम्हने अपके हाथ धोए। "मैं इस आदमी के खून से निर्दोष हूं," उन्होंने कहा। "यह आपकी जिम्मेदारी है!"

25 सब लोगोंने उत्तर दिया, कि इसका खून हम पर और हमारे लड़केबालोंपर हो।

26 तब उस ने बरअब्बा को उनके लिथे छोड़ दिया? परन्‍तु उस ने यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए।

सैनिक यीशु का मजाक उड़ाते हैं

27 तब राज्यपाल के सिपाही यीशु को किले के भीतर ले गए, और सिपाहियों की सारी मण्डली उसके चारों ओर इकट्ठी कर ली।

28 उन्होंने उसके कपड़े उतार दिए, और उसे लाल रंग का वस्त्र पहिनाया,

29 और काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा। उन्होंने उसके दाहिने हाथ में लाठी थमा दी। तब वे उसके सामने घुटने टेक कर उसका उपहास करने लगे। "जय हो, यहूदियों के राजा!" उन्होंने कहा।

30 उन्होंने उस पर थूका, और लाठी लेकर उसके सिर पर बार-बार मारने लगे।

31 जब वे उसका ठट्ठा कर चुके, तब उसके बागे को उतारकर उसी के कपड़े उसे पहिना दिए। फिर वे उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिये ले चले।

यीशु का सूली पर चढ़ना

32 जब वे निकल रहे थे, तो उन्हें शमौन नाम एक कुरेनी मनुष्य मिला, और उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि उसका क्रूस उठा ले चले।

33 वे गुलगुता (जिसका अर्थ है “खोपड़ी का स्थान”) नामक स्थान पर पहुँचे।

34 वहां उन्होंने यीशु को पित्त मिलाई हुई दाखमधु पिलाई; पर चखने के बाद उसने पीने से मना कर दिया।

35 जब उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ाया, तो चिट्ठी डाल कर उसके कपड़े आपस में बांट लिए।

36 और वे वहां बैठकर उसकी पहरा देने लगे।

37 उन्होंने उसके सिर के ऊपर यह दोषपत्र लिख दिया, यह यहूदियों का राजा यीशु है।

38 उसके साथ दो बलवा करनेवाले भी क्रूस पर चढ़ाए गए, एक उस की दहिनी ओर और दूसरा उस की बाईं ओर।

39 और आने जाने वाले सिर हिला हिलाकर उसकी निन्दा करते थे

40 और कहा, हे मन्‍दिर के ढाने वालो, और तीन दिन में बनानेवाले, अपने आप को बचा; यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो क्रूस पर से उतर आ!”

41 इसी रीति से महाथाजक, शास्त्री और पुरनिए भी उसका उपहास करते थे।

42 उन्होंने कहा, “उसने औरों को तो बचाया, परन्तु अपने आप को नहीं बचा सकता! वह इस्राएल का राजा है! अब वह क्रूस पर से उतर आए, तब हम उस पर विश्वास करेंगे।

43 वह परमेश्वर पर भरोसा रखता है। यदि वह उसे चाहता है तो अब परमेश्वर उसे छुड़ाए, क्योंकि उसने कहा था, 'मैं परमेश्वर का पुत्र हूं।'”

44 इसी रीति से जो बलवा करनेवाले उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे, वे भी उसकी निन्दा करने लगे।

यीशु की मृत्यु

45 दोपहर से तीन पहर तक सारे देश में अन्धेरा छा गया।

46 तीसरे पहर के लगभग यीशु ने ऊंचे शब्द से पुकार कर कहा, एली, एली, लमा शबक्तनी? (जिसका अर्थ है "मेरे भगवान, मेरे भगवान, तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया?")।

47 जो वहां खड़े थे, उनमें से कितनों ने यह सुनकर कहा, वह एलिय्याह को पुकारता है।

48 उन में से एक तुरन्त दौड़ा, और स्पंज ले आया। उस ने उसे सिरके से भरकर एक लाठी पर रखा, और यीशु को पीने के लिथे दिया।

49 औरों ने कहा, अब उसे रहने दो। देखते हैं कि एलिय्याह उसे बचाने आता है या नहीं।”

50 और जब यीशु ने फिर बड़े शब्द से पुकारा, तो प्राण छोड़ दिए।

51 उसी घड़ी मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया। धरती कांप उठी, चट्टानें फट गईं

52 और कब्रें खुल गईं। बहुत से पवित्र लोगों के शरीर जो मर गए थे, जीवित हो उठे थे।

53 यीशु के जी उठने के बाद वे कब्रों से निकलकर पवित्र नगर में गए, और बहुत लोगों को दिखाई दिए।

54 सूबेदार और उसके साथ जो यीशु का पहरा दे रहे थे, भूकम्प और जो कुछ हुआ था, देखकर बहुत डर गए, और कहा, निश्चय यह परमेश्वर का पुत्र था।

55 वहाँ बहुत सी स्त्रियाँ थीं, जो दूर से देख रही थीं। वे यीशु की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए गलील से उसके पीछे-पीछे आए थे।

56 उन में मरियम मगदलीनी, याकूब और यूसुफ की माता मरियम, और जब्दी के पुत्रोंकी माता यीं।

यीशु का दफन

57 जब सांझ हुई, तो यूसुफ नाम अरिमतियाह का एक धनी मनुष्य आया, जो आप ही यीशु का चेला हो गया या।

58 उस ने पिलातुस के पास जाकर यीशु की लोथ मांगी, और पीलातुस ने आज्ञा दी, कि उसे दे दी जाए।

59 यूसुफ ने लोय को ले कर शुद्ध मलमल में लपेटा,

60 और उसे अपनी नई कब्र में रखा, जो उस ने चट्टान में से खोदी यी। उसने कब्र के द्वार के सामने एक बड़ा पत्थर लुढ़का दिया और चला गया।

61 मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम वहां कब्र के साम्हने बैठी थीं।

कब्र पर गार्ड

62 दूसरे दिन, तैयारी के दिन के बाद के दिन, प्रधान याजक और फरीसी पिलातुस के पास गए।

63 उन्होंने कहा, हे प्रभु, हमें स्मरण आता है, कि उस भरमानेवाले ने अपने जीते जी कहा या, कि तीन दिन के बाद मैं जी उठूंगा।

64 सो आज्ञा दे, कि तीसरे दिन तक कब्र की रखवाली की जाए।

कहीं ऐसा न हो कि उसके चेले आकर उसकी देह चुरा लें, और लोगों से कहें, कि वह मरे हुओं में से जी उठा है।

यह पिछला धोखा पहले से भी बुरा होगा।”

65 पीलातुस ने उत्तर दिया, पहरुए रख लो। "जाओ, कब्र को उतना ही सुरक्षित बनाओ जितना तुम जानते हो।"

66 सो उन्होंने जाकर पहरूओं को बैठाकर, पत्थर पर मुहर लगाकर, कब्र की रखवाली की।

मिसेरिकोर्डी के प्रिय बहनों और भाइयों, मैं कार्लो मिग्लिएटा, डॉक्टर, बाइबिल विद्वान, आम आदमी, पति, पिता और दादा (www.buonabibbiaatutti.it).

आज मैं आपके साथ सुसमाचार पर एक संक्षिप्त चिंतन साझा करता हूं, विशेष विषय के संदर्भ में दया.

यीशु का जुनून और मृत्यु

मत्ती (26-27) के अनुसार

बाइबिल के विद्वान आम तौर पर इस बात से सहमत हैं कि सुसमाचार परंपरा का यह हिस्सा सबसे पहले एक निश्चित संरचना प्राप्त करने वाला था।

यीशु के जीवन का कोई भी भाग विस्तार की समान प्रचुरता और स्रोतों की समान समरूपता के साथ नहीं लिखा गया है।

मार्क में उनके बाकी सुसमाचार के संबंध में जुनून कथा को आवंटित स्थान एपोस्टोलिक चर्च में निभाई गई इस कथा की महत्वपूर्ण भूमिका का संकेत है; मैथ्यू में असमानता भी उल्लेखनीय है, हालांकि कम है।

यीशु का प्रारंभिक उपदेश उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान के कारण केंद्रित था।

यह परमेश्वर का महान बचाने का कार्य था और उद्धार के इतिहास में उद्धार के कार्य का उच्च बिंदु था।

पौलुस ने कहा कि उसने मसीह का प्रचार किया और उसे क्रूस पर चढ़ाया गया (1 कुरिन्थियों 2:2)।

जबकि पुरातनता में प्रचलित 'लाइव्स ऑफ हीरोज' ने महान विभूतियों की सफलताओं और विलक्षणताओं को याद किया, और क्षणभंगुर रूप से उनके अंत का संकेत दिया, प्रारंभिक ईसाइयों ने अपने गुरु और भगवान, उनके जुनून, मृत्यु के दुखद निधन को याद करने के लिए अधिकांश सुसमाचारों को समर्पित किया। और पुनरुत्थान।

यह एक ऐसा विषय था जिसने शुरुआती समुदाय को गहराई से परेशान किया था: यह अकल्पनीय था कि एक भगवान पीड़ित हो सकता है और मर सकता है। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि जब यीशु ने घोषणा की थी कि 'मनुष्य के पुत्र को बहुत पीड़ा उठानी होगी, और उसे डांटा जाएगा... और फिर मार डाला जाएगा, और तीन दिन के बाद फिर से जी उठेगा..., पतरस ने उसे अलग ले जाकर डांटा' (मार्क 8) : 31-32)!

इस्राएल की अपेक्षा एक ऐसे मसीहा से थी जो महिमा और शक्ति के प्रकटीकरण के माध्यम से स्वतंत्रता, उद्धार, शांति और खुशी लाएगा।

महायाजक और शास्त्री, क्रूस के नीचे, यीशु से कहेंगे: "उसने दूसरों को बचाया, वह स्वयं को नहीं बचा सकता! इस्राएल का राजा मसीह, अब क्रूस पर से उतर आ, कि हम देखकर विश्वास करें” (मरकुस 15:31-32)।

और पहली विधर्मियों ने सटीक रूप से विवाद किया कि परमेश्वर का पुत्र पीड़ित हो सकता था और मर सकता था। इसके अलावा, पहले विश्वासी न केवल परमेश्वर की मृत्यु को देखकर चौंक गए, बल्कि यह देखकर कि परमेश्वर की मृत्यु एक दुखद तरीके से हुई, "कुकर्मियों में गिने गए" (लूका 22:37, की तुलना 53:12; यूह 18:30)।

मैथ्यू में जुनून की कहानी में स्वयं के कुछ विस्तार शामिल हैं। इनमें से कुछ पौराणिक हैं, अन्य पुराने नियम के शास्त्रों के "पूर्ति" ग्रंथों की व्याख्या का परिणाम हैं, जो अक्सर शैशवावस्था के आख्यानों में उल्लेखित होते हैं, और सुसमाचार के अन्य भागों में कम बार।

जुनून कथा यीशु के शब्दों का लेखा-जोखा नहीं है, हालांकि यीशु मार्क की तुलना में मैथ्यू में अधिक बार बोलते हैं, लेकिन रहस्योद्घाटन वाले तथ्यों के बारे में।

यह हमारे लिए अजीब लग सकता है, लेकिन वास्तव में सुसमाचारों में या तो यीशु के शब्दों के माध्यम से या दूसरों के शब्दों का उपयोग करके जुनून की कोई धार्मिक व्याख्या नहीं है।

यह प्रेरितिक शिक्षा पर छोड़ दिया गया था, जो पौलुस के पत्रों से स्पष्ट है।

मैथ्यू के खाते की विशेषताएं

मैथ्यू मार्क पर निर्भर करता है, लेकिन उसके अपने सात प्रक्षेप हैं:

क) तलवार से मारे गए शिष्य को शब्द: 26.52-54

ब) यहूदा की मृत्यु: 27:3-10

ग) पीलातुस की पत्नी का सपना: 27:19

घ) पीलातुस अपने हाथ धो रहा है: 27:24-25

ङ) कब्रों का खुलना: 27:51-53

च) मकबरे पर पहरेदार: 27,62-66

छ) किराए के गार्ड: 28,11-15

मैथ्यू के अनुसार जुनून की धार्मिक विशेषताएं

क) जुनून सभी इंजील की पूर्ति है

ख) यीशु दृश्य पर हावी है: बीस से अधिक उदाहरणों में मैथ्यू यीशु का स्पष्ट रूप से नाम लेता है, जबकि मार्क में यह केवल निहित है; यीशु सब कुछ पहले से जानता है (“ग्नूस”: 26,10); उसके पास शासन की उपाधियाँ हैं: भगवान (22,26), मसीहा (26,68; 27,17.22), ईश्वर का पुत्र (27,40.43)

ग) यीशु की मृत्यु में यहूदियों की जिम्मेदारी, उनके स्वयं के तीन प्रक्षेपों द्वारा जोर दिया गया: पिलातुस ने अपने हाथ धोए (27:24-25), कब्र पर पहरेदार (27:62-66), रिश्वत देने वाले पहरेदार ( 28:11-15).

घ) जुनून और पुनरुत्थान सर्वनाश की घटनाएँ हैं: कब्रों का खुलना (27.51-53)।

अनुभाग को छह भागों में बांटा गया है, प्रत्येक में तीन इकाइयां हैं:

  • मौत की तैयारी (26:1-16)
  • पास्का भोज (26:17-29)
  • गतसमनी में (26:30-56)
  • यहूदी परीक्षण (26:57-27:10)
  • रोमन परीक्षण (27:11-31)
  • कलवरी (27:32-61)

मत्ती 26, क्रूस पर यीशु की मृत्यु, प्रेम का सर्वोच्च उपहार

विचार करते हुए, जैसा कि हमें आज की धर्मविधि, प्रभु के दुःखभोग और मृत्यु द्वारा करने के लिए आमंत्रित किया गया है, हमें "बलिदान" की अपनी वर्तमान अवधारणा को इतने सारे बुतपरस्तों से शुद्ध करना चाहिए और निश्चित रूप से इंजील के मैल से नहीं जो अक्सर इसके साथ होता है।

सबसे पहले, सुसमाचार इस बात पर बल देता है कि पुत्र की रक्तरंजित मृत्यु पिता की इच्छा नहीं है, इसके बजाय बुराई की ताकतों की जिम्मेदारी पर बल देता है जो मसीह के खिलाफ गिरोह बनाते हैं।

यह यीशु के समय की धार्मिक और राजनीतिक शक्तियाँ हैं जो उसके खिलाफ एकजुट होती हैं क्योंकि वे उसके अच्छे, प्रेम और न्याय के संदेश का विरोध करती हैं।

"यीशु को अन्यायी लोगों द्वारा मौत दी गई क्योंकि, एक अन्यायपूर्ण दुनिया में, केवल निंदा की जा सकती है, अस्वीकार की जा सकती है, मारी जा सकती है" (ई. बियांची)।

"उस इशारे में जिसके द्वारा यीशु को धोखा दिया गया है और" पापियों के हाथों में सौंप दिया गया है "(मत्ती 26:45) इसराइल की सभी अस्वीकृति को अभिव्यक्त करता है, और अधिक विश्व स्तर पर मानवता के लिए, जिसे पिता ने भेजा है" (ए) . बूज़ोलो)।

सुसमाचार यीशु की मृत्यु को एक अनुष्ठानिक मृत्यु के रूप में नहीं, बल्कि एक घोर अन्याय के रूप में वर्णित करते हैं; मत्ती हमें बताता है कि पिलातुस “जानता था कि उन्होंने उसे डाह से पकड़वा दिया है” (मत 26:18), और यह कि उसकी पत्नी ने एक सपना देखा था जिसके कारण उसने उसे “धर्मी” घोषित किया (मत्ती 26:19)। ).

इस प्रकार क्रूस एक तामसिक परमेश्वर की "संतुष्टि" का क्षण नहीं है, बल्कि उसका "न्याय" क्या है (रोमियों 1:17; 3:21-26) का उत्कृष्ट प्रकटीकरण है, अर्थात, उसके साथ एकता में प्रवेश करने की इच्छा हमें पूरी तरह से, मानव जीवन को उसके अंत तक साझा करना, भले ही दुखद हो! येसु ने क्रूस को जो वह था, से बदल दिया, जो कि, पुरुषों की हिंसा का प्रतीक था, प्रेम की निशानी में: यह वास्तव में उनके अवतार का ऐतिहासिक रूप से सर्वोच्च क्षण है, एक ऐसे जीवन का जो पूरी तरह से एक उपहार था, "केनोसिस" , पुरुषों के लिए "छीनना" (फिल 2: 7: दूसरा पढ़ना)।

कार्ल राह्नर कहते हैं: “सुसमाचार बलिदान की धार्मिक श्रेणी का अनादर करते हैं, रक्त के प्रायश्चित की अवधारणा और प्रतिनिधिक संतुष्टि को उस प्रेम से प्रतिस्थापित करते हैं जो क्षमा करता है और बचाता है।

क्रूस पर येसु की मृत्यु वास्तव में उनके प्रेम का सर्वोच्च उपहार है।

सभी के लिए अच्छा दया!

जो कोई भी पाठ की अधिक संपूर्ण व्याख्या, या कुछ गहन विश्लेषण पढ़ना चाहता है, कृपया मुझसे पूछें migliettacarlo@gmail.com.

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स्रोत

Spazio Spadoni

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